भाजपा मंडल दल्लीराजहरा ने श्रधेय डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी के पुण्यतिथि वार्ड क्र. 26 के आंगनबाड़ी के पास,शक्ति केंद्र क्रमांक 04 के बूथ क्रमांक 175 में मनाया।

भास्कर न्यूज़ 24/ वीरेंद्र भारद्वाज/ दल्लीराजहरा। भाजपा मंडल दल्लीराजहरा ने श्रधेय डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी के पुण्यतिथि के अवसर पर वार्ड क्र. 26 के आंगनबाड़ी के पास,शक्ति केंद्र क्रमांक 04 के बूथ क्रमांक 175 में वार्ड क्रमांक 24,26 व 27 के कार्यकर्त्ताओ द्वारा पुण्यतिथि मनाया गया।
डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी के जीवन पर उद्बोधन मंडल अध्यक्ष रामेश्वर साहू एवं नगर पालिका अध्यक्ष तोरण लाल साहू द्वारा रखा गया।
इस आयोजन में मंडल अध्यक्ष रामेश्वर साहू, मंडल महामंत्री रमेश गुर्जर , मंडल उपाध्यक्ष मुकेश खस, मंडल कोषाध्यक्ष कैलाश छाजेड़,शक्ति केंद्र प्रभारी रमेश गुर्ज्जर, भूपेंद्र बॉबी छतवाल , विशाल मोटवानी , राकेश देवांगन , समर्थ लखानी अरविंद पिपरे , वार्ड के महिला शक्ति उपस्थित रहे
अपने उद्बोधन में नगर पालिका अध्यक्ष तोरण लाल साहू ने कहां की डॉ. मुखर्जी ने सन् 1939 से राजनीति में भाग लिया और इसी को अपना कर्मक्षेत्र बनाया तथा आजीवन इसी में लगे रहे। उन्होंने गांधी जी व कांग्रेस की नीति का विरोध किया, जिससे हिन्दुओं को हानि उठानी पड़ी थी। उन्होंने एक बार कहा था कि- ‘वह दिन दूर नहीं जब गांधी जी की अहिंसावादी नीति के अंधानुसरण के फलस्वरूप समूचा बंगाल पाकिस्तान का अधिकार क्षेत्र बन जाएगा।’ तथा उन्होंने नेहरू जी और गांधी जी की तुष्टिकरण की नीति का सदैव खुलकर विरोध किया। इसी कारणवश उन्हें संकुचित सांप्रदायिक विचार का द्योतक समझा जाने लगा। वही मंडल अध्यक्ष रामेश्वर साहू एवं बॉबी छतवाल ने कहा कि डॉ. मुखर्जी ने स्वतंत्र भारत के प्रथम मंत्रिमंडल में अगस्त 1947 को एक गैर-कांग्रेसी मंत्री के रूप में वित्त मंत्रालय का काम संभाला। तथा उन्होंने चितरंजन में रेल इंजन और विशाखापट्टनम में जहाज और बिहार में खाद बनाने का कारखाना आदि स्थापित करवाए। उनके सहयोग से ही हैदराबाद निजाम को भारत में विलीन होना पड़ा।
जब सन् 1950 में भारत की दशा दयनीय थी, तब इस स्थिति से डॉ. मुखर्जी के मन को गहरा आघात लगा और उन्होंने भारत सरकार की अहिंसावादी नीति के फलस्वरूप मंत्रिमंडल से त्यागपत्र देकर संसद में विरोधी पक्ष की भूमिका का निर्वाह करने लगे। एक ही देश में 2 झंडे और 2 निशान भी उन्हें स्वीकार नहीं थे। अतः कश्मीर का भारत में विलय करने के लिए डॉ. मुखर्जी ने प्रयत्न प्रारंभ कर दिए। इसके लिए उन्होंने जम्मू की प्रजा परिषद पार्टी के साथ मिलकर आंदोलन छेड़ दिया।



