जुवारी (देवदहरा) नदी” की सांस्कृतिक पहचान पुनर्स्थापित करने हेतु नामपट लगाए जाने एवं उद्गम स्थल के संरक्षण की दिशा में उचित कदम उठाया जाए- समर्थ लखानी (भाजपा कार्यकर्ता)

भास्कर न्यूज़ 24/ वीरेंद्र भारद्वाज/ दल्लीराजहरा। जुवारी (देवदहरा) नदी” की सांस्कृतिक पहचान पुनर्स्थापित करने हेतु नामपट लगाए जाने एवं उद्गम स्थल के संरक्षण को लेकर भाजपा कार्यकर्ता समर्थ लखानी ने नगर पालिका अध्यक्ष, उपाध्यक्ष एवं मुख्य नगर पालिका अधिकारी को ज्ञापन सोपा है। जिसमे श्री लखानी ने कहा है कि हमारा नगर दल्लीराजहरा केवल खनिज, रेलवे या उद्योग के लिए नहीं, बल्कि अपनी समृद्ध प्राकृतिक और सांस्कृतिक विरासत के लिए भी जाना जाता है। इसी विरासत की एक अमूल्य धरोहर है—जुवारी नदी, जिसे क्षेत्र के ग्रामीण देवदहरा के नाम से भी जानते हैं।इस नदी का उल्लेख वर्ष 1921 में प्रकाशित “दुर्ग दर्पण” जैसे ऐतिहासिक ग्रंथों में भी मिलता है, साथ ही यह नाम विभिन्न सरकारी दस्तावेजों में विधिवत “जुवारी नदी” के रूप में दर्ज है। यह न केवल एक जलधारा है, बल्कि हमारे नगर का भूगोल, इतिहास और संस्कृति का हिस्सा है। इसका उद्गम स्थल वार्ड क्रमांक 16 के उत्तर-पश्चिम दिशा में, मां शीतला मंदिर परिसर स्थित प्राचीन जलकुंड है, जो दल्लीराजहरा और कोंडेकसा गांव की सीमा पर स्थित है। यहीं से यह पवित्र जलधारा निकलकर नगर की बस्तियों, खेतों, धार्मिक स्थलों और मोहल्लों को स्पर्श करते हुए अंततः तांदुला नदी में समाहित होती है।
आज यह नदी पहचान और स्वाभिमान खोकर एक गंदे नाले का रूप ले चुकी है, जिसका सबसे बड़ा कारण यही है कि इसे उसका नाम और सम्मान नहीं मिला। नगर में उचित स्थानों पर “जुवारी नदी” के नामपट (Board) लगाए जाएं, जिससे जनमानस को यह ज्ञात हो सके कि यह एक पवित्र ऐतिहासिक नदी है, कोई नाला नहीं।. जनजागरण के माध्यम से नागरिकों को इस नदी के महत्व से अवगत कराया जाए ताकि भविष्य की पीढ़ियां इसे सम्मान दे सकें। नदी के उद्गम स्थल (मां शीतला मंदिर परिसर स्थित जलकुंड) को एक संरक्षित और सौंदर्यीकृत सांस्कृतिक धरोहर स्थल के रूप में विकसित किया जाए। वहां एक भव्य प्रवेश द्वार, जानकारी युक्त पट्टिका, स्वच्छता अभियान, बैठक स्थल और वृक्षारोपण आदि कर इसे नगर का गौरव स्थल बनाया जाए। यह केवल नदी का नहीं, नगर की आत्मा का पुनर्जन्म होगा।
जो पीढ़ियों तक बता सकेगा कि हमने अपने इतिहास को मिटने नहीं दिया। हमने जलधारा को उसका नाम वापस दिया और उस पहचान के साथ उसकी गरिमा भी।