जनमंच

एन. रघुरामन का कॉलम : अगर हमें पता हो कि कुछ चीजें अगली पीढ़ी के लिए अच्छी हैं तो उनमें बहस की गुंजाइश न छोड़ें

आपको याद है वो पार्क में झूलने या पुल-अप करने के लिए आड़ी लोहे की रॉड होती थीं, जो कि दो-दो की जोड़ी में एक दूसरे से दो फुट दूर होती थीं? अब पांच साल के बच्चे और उसके ट्रेनर के बीच बातचीत की कल्पना करें। बच्चा चौंकते हुए कह रहा है, ‘आप मुझसे क्या करने के लिए कह रहे हैं?’ प्रशिक्षक शांत चित्त से कहता है, ‘कम से कम तीन पुलअप’।

बच्चा अधिकारपूर्ण लहजे में कहता है ‘क्यों? ऐसा कोई करिअर नहीं है जिसके लिए मुझे पुलअप करने की जरूरत है। बिना किसी व्यापक उद्देश्य के एक भी पुलअप समय और भौतिक संसाधनों की बर्बादी होगी।’ प्रशिक्षक, जिसका काम अपने सारे शिष्यों को प्रशिक्षित करना है, फिर चाहे किसी भी उम्र का हो, वह उस बहस कर रहे बच्चे को उठाकर उन रॉड पर लटका देते हैं और दूर खड़े हो जाते हैं, अब बच्चा चिल्लाता है, ‘मुझे ग्रेविटी से नफरत है।’ ये काल्पनिक लाइंस सुनकर क्या आप मुस्कुराए? तब आगे पढ़िए।

प्रसिद्ध कार्टून चित्रकथा ‘द ब्रिलियंट माइंड ऑफ एडिसन ली’ की ये मजेदार लाइंस मुझे तब याद आईं जब शनिवार को सैर खत्म करते ही पार्क में मैंने उसी उम्र के एक बच्चे को उसके पिता द्वारा रॉड पर लटकाते देखा, बच्चे ने ग्लव्स पहने थे पर पकड़ने के लिए रॉड बहुत ठंडी थी।

पिता ने उसके चिल्लाने को नजरअंदाज कर दिया और इस बीच पूरे दो मिनट जूते के लेस बांधने में व्यस्त रहे! बच्चे को नीचे उतारने तक पूरे दो मिनट पिता कहते रहे, ‘पुलअप, थोड़ा ऊपर उठाओ, कम ऑन तुम कर सकते हो।’ बच्चे ने दो बार किया और फिर चिल्लाने लगा।

पिता ने असल में उसे इसलिए उतारा क्योंकि बाकी सैर करने वाले रुककर देखने लगे थे। कुछ लोगों ने एेसी शक्ल बनाई जैसे पिता बच्चे को परेशान कर रहे हों, वहीं कुछ उन मजेदार पलों को देखने रुक गए, हालांकि बच्चा कार्टून कैरेक्टर की तरह फनी बात नहीं कर रहा था।

जैसे ही मैंने पिता-बच्चे के बीच का वो वाकिया देखा तो मेरे मन में चलने लगी कार्टून लाइंस के बीच मैं मुस्कराने लगा और फिर बेंच पर बैठकर मोबाइल में 66 साल के अिनल कपूर की इंस्टाग्राम प्रोफाइल देखी, जहां उन्होंने अपनी चार दशक की बॉलीवुड यात्रा की तस्वीरें साझा की थीं। तस्वीरों के साथ उन्होंने लिखा, ‘इन चार दशकों में मैं यहां हूं।

सोच बदल गई है, प्रतिभा बदल गई है, स्वाद बदल गया है और दर्शक भी बदल गए हैं। पर एक चीज जो नहीं बदली वह कड़ी मेहनत, दृढ़ता और दृढ़ विश्वास।’ वह कितने सही हैं। कोई ताज्जुब नहीं कि इस उम्र में भी वह एक्शन थ्रिलर सीरिज़ ‘द नाइट मैनेजर’ में जल्द दिखाई देंगे, यह टॉम हिडल्स्टन की उसी नाम से बनी सीरिज का रुपांतरण है।

इससे मुझे मरहूम अभिनेता इरफान खान के बेटे बाबिल की याद आ गई, जो इस हफ्ते मैसूर में हो रही नाट्य कार्यशाला में गए हैं, ये उनके पिता के मेंटर रहे व महान रंगमंच निर्देशक प्रसन्ना अपनी एकेडमी ‘एक्टिंग शास्त्र’ में करा रहे हैं। प्रसन्ना और खान परिवार के बीच का संबंध 1980 के दशक का है, जब प्रसन्ना एनएसडी में पढ़ाते थे और इरफान वहां छात्र थे और उनके नाटकों का हिस्सा होते थे।

प्रसन्ना से प्रभावित इरफान डिनर टेबल पर उनके बारे में बातें किया करते थे। अपने पिता से प्रभावित बाबिल अब फिल्म इंडस्ट्री में छोटे-छोटे कदम (2022 में कला से) उठा रहे हैं, उन्हें उम्मीद है कि 7 फरवरी को खत्म हो रही कार्यशाला से वह और हुनरमंद होंगेे।

फंडा यह है कि अगर हमें पता हो कि कुछ चीजें अगली पीढ़ी के लिए अच्छी हैं तो उनमें बहस की गुंजाइश न छोड़ें, उन्हें धक्का लगाकर प्रेरित करें। बच्चे बड़े होकर इसका महत्व समझेंगे और आपके रुख की सराहना करेंगे जैसे बाबिल बिना धक्के के खुद को ट्रेन्ड कर रहे हैं।

News Desk

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